यह इसलिए कि डायरी में लिखा गया जांच अधिकारी के गतिविधियों के विवरण से रोज नामचा में लिखा गया उसके विवरण का मेल होनी चाहिए।
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परंतु अगर इस धारा में संशोधन कर धारा 227 के अंतर्गत सुनवाई के पहले अभियुक्त को यह अधिकार दिया जाए एवं साथ ही थाने के रोज नामचा या दैनिक विवरणी के साथ इसका मिलान करने दिया जाए तो अनिवार्य रूप से पुलिस जांच के अनेक विरोधाभास सामने आ जाएंगें जो साबित कर देगा कि पुलिस ने झूठा प्रकरण दर्ज किया है।